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Showing posts from June, 2010
‘दिल्ली प्रेस’ की पत्रिका ‘सरस सलिल’ में प्रकाशित हमारी कवर स्टोरी
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व्यंग्य: बिजली का बिल
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-- सुनील कुमार ‘सजल’ (मीडिया केयर नेटवर्क) गर्मी का मौसम है। जैसे अल्हड़ युवती की जवानी गर्म होती है, वैसे ही बैसाख के दिन पूरे शबाब में गनगना रहे हैं और ऊपर से बिजली विभाग वालों की कुख्यात कृपा से बिजली कटौती! हाय राम मारकर ही दम लेगी क्या! खैर! जब तक गर्मी में 14-14 घंटे की बिजली कटौती न हो तो काहे की गर्मी! कूलर, ए.सी. की ठंडी हवा या फ्रिज का ठंडा पानी पीकर क्या कोई गर्मी का आनंद उठा सकता है? जब तक गुनगुने जल से प्यास न बुझायें, बदन पर लू के थपेड़े न पड़ें तो काहे की गर्मी और काहे का गर्मी का मजा। वैसे हमने मनोविज्ञान का कचरा ज्ञान प्राप्त कर घर में एक रेफ्रिजरेटर ला रखा है ताकि देखकर दिमाग को ठंडे का असर पड़े और मोहल्ले के लोग देखकर यह न कह सकें, ‘‘हाय इतना सब कुछ होते हुए भी घर में एक फ्रिज भी नहीं है, मिट्टी के घड़े का पानी पीते हो। ऐसी कंजूसी हमने देखी नहीं कहीं।’’ हमने एक चालाकी और अपना रखी है कि कोल्ड ड्रिंक की जगह घड़े के पानी में नींबू रस और शक्कर घोलकर मेहमानों के घर में प्रवेश के साथ कबाड़ी वालों से खरीदी गई ब्रांडेड कम्पनी की बोतलों में भरकर चुपचाप फ्रिज में रख देते हैं ताकि
जादुई चिमटा
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एक दिन बाजार में एक आदमी तलवार बेच रहा था। ‘‘इसकी कीमत क्या है?’’ होजा ने पूछा। ‘‘सोने की पचास मोहरें!’’ आदमी ने जवाब दिया। ‘‘एक तलवार की कीमत सोने की पचास मोहरें?’’ होजा ने हैरान होते हुए पूछा। ‘‘यह जादुई तलवार है मियां!’’ उस आदमी ने जवाब देते हुए कहा, ‘‘जब आप इससे वार करेंगे, तब यह खुद ब खुद लंबी हो जाएगी और दुश्मन पर टूट पड़ेगी, चाहे वह आपसे कितनी भी दूरी पर हो!’’ उस व्यक्ति की बात सुनकर होजा लंबे-लंबे डग भरते हुए अपने घर जा पहुंचे और घर से एक बड़ा सा चिमटा लेकर वापस लौटे। फिर चिमटा उस आदमी को थमाते हुए बोले, ‘‘तुम इसे 100 सोने की मोहरों के बदले बेच दो।’’ ‘‘लेकिन यह तो मामूली चिमटा है।’’ उस व्यक्ति ने एतराज करते हुए कहा। ‘‘यह चिमटा जादुई भी है दोस्त’’ होजा ने उत्तर दिया, ‘‘क्योंकि जब मेरी बीवी इसे मेरी तरफ फैंकती है तो यह हवा में उड़ता हुआ ठीक मुझे आ लगता है, चाहे मैं उससे कितनी भी दूर क्यों न होऊं!’’ (मीडिया एंटरटेनमेंट फीचर्स)
अहंकारी राजा
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एक सम्राट अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझता था। वह अपने अहंकार और स्वार्थ के तहत यही समझता था कि वह जो कुछ भी कर रहा है, बिल्कुल ठीक कर रहा है। वह खुद को दुनिया का बेहतरीन सम्राट समझता था। नगरवासी उसे अपने पैरों की जूती के समान लगने लगे थे। किसी भी आयोजन के लिए आने वाले निमंत्रण पर वह अपने प्रतिनिधि के रूप में अपनी जूतियां ही भेज देता था। प्रजा राजा के इस व्यवहार से बहुत परेशान थी। युवा वर्ग का मानना था कि राजा सठिया गया है तो ऐसे में हम उसे अपने आयोजनों में ही क्यों बुलायें किन्तु वृद्धजन, कोई नई मुसीबत उन्हें न घेर ले, इस डर से हमेशा राजा के पास न्यौता भेज देते। वे जानते थे कि विरोध किया तो किसी पिंजरे में बंद शेर की भांति मिमियाकर ही रह जाएंगे लेकिन कुछ समझदार लोग सम्राट को सबक सिखाने के लिए उचित अवसर की प्रतीक्षा कर रहे थे। मौका भी शीघ्र आ गया। सम्राट ने अपने पुत्र के विवाह में सम्मिलित होने के लिए प्रजा को निमंत्रण दिया। सबने मिलकर विचार-विमर्श किया। सभी का एक ही जवाब था, ‘‘अब हम और बर्दाश्त नहीं कर सकते। यह स्वर्ण अवसर है और इस अवसर को हाथ से निकलने देना हमारी जिंदगी की सबसे बड़ी
कम्प्यूटर की-बोर्ड बन रहे हैं जीवाणुओं का अड्डा
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-- योगेश कुमार गोयल होनोलुलु में ट्रिपलर आर्मी मेडिकल सेंटर के संक्रामक रोग विशेषज्ञों के एक दल ने आईयूसी (आपात चिकित्सा इकाई) के 10 कम्प्यूटर की-बोर्ड का दो महीने में 8 बार संवर्धन किया तो पाया कि करीब 25 प्रतिशत की-बोर्ड में स्टेफाइलोक्कोकस औरेस जीवाणु की मौजूदगी है, जिनमें कई की एंटीबायोटिक के प्रति प्रतिरोधकता विकसित हो गई थी। आईयूसी में रखे कम्प्यूटरों के की-बोर्ड में प्राणघातक गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल संक्रमण पैदा करने वाले एंटरोकोकस जीवाणु भी मिले। की-बोर्ड की जांच किसी महामारी के फैलने के कारण नहीं की गई थी बल्कि यह जानने के लिए की गई थी कि कहीं कम्प्यूटर की-बोर्ड भी हानिकारक बैक्टीरिया के भंडारक तो नहीं हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि कम्प्यूटर के की-बोर्ड भी खतरनाक जीवाणुओें के अड्डे बन गए हैं। रक्तचाप घटाइए, याद्दाश्त बढ़ाइए बढ़ते रक्तचाप का संबंध हृदय रोगों और हार्ट अटैक से माना जाता रहा है। इसी कारण यह मान्यता रही है कि यदि किसी व्यक्ति का रक्तचाप बढ़ा हो तो चिकित्सकीय परामर्श लेकर इसे कम करके हृदय रोगों और हृदयाघात से बचा जा सकता है लेकिन एक अध्ययन से यह तथ्य उभरकर सामने आया है कि
सुना आपने?
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महिलाओं के मुकाबले कम सुनते हैं पुरूष -- योगेश कुमार गोयल (मीडिया एंटरटेनमेंट फीचर्स) अमेरिकी वैज्ञानिकों की बात पर विश्वास करें तो पुरूष हमेशा महिलाओं से कम ही सुनते हैं क्योंकि वे सुनने के लिए दिमाग के सिर्फ एक ही हिस्से का इस्तेमाल करते हैं। इस निष्कर्ष के आधार पर वैज्ञानिक महिलाओं को अब यह सलाह दे रहे हैं कि यदि आपके पति या बड़े भाई अथवा परिवार का अन्य कोई पुरूष आपकी बात को अनसुना करते हुए टीवी पर क्रिकेट मैच देखने में मग्न हो तो आप निराश न हों क्योंकि महिलाओं के मुकाबले पुरूष वाकई कम सुनते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि सच तो यह है कि पुरूष सुनने के लिए अपने दिमाग का सिर्फ एक ही हिस्सा इस्तेमाल करते हैं जबकि महिलाएं मस्तिष्क के दोनों हिस्सों से सुनती हैं और शायद इसी वजह से बहुत सी महिलाओं को अपने पति बहरे नजर आते हैं। यह अजीबोगरीब निष्कर्ष कैलिफोनिया वि.वि. के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक शोध के बाद निकाला गया है। शोध द्वारा वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि मस्तिष्क में ऐमिगडिला नामक एक छोटा सा हिस्सा होता है, जो भावनात्मक जानकारियों को संचालित करता है। महिलाएं और पुरूष ऐमिगडिला के
अति तनाव की दवा से दूर होगी नपुंसकता
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प्रस्तुति: योगेश कुमार गोयल डॉक्टर से सलाह लिए बगैर गलत दवा खा लेने से कई बार मरीज को दवा के साइड इफैक्ट्स का सामना करना पड़ता है, जिसका उसके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है लेकिन कभी-कभी किसी दवा का साइड इफैक्ट भी मरीज के लिए उपयोगी हो जाता है। कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि हाइपरटेंशन यानी अति तनाव के समय ली जाने वाली दवा का साइड इफैक्ट खासतौर से पुरूषों के लिए उपयोगी होता है। एक शोध के दौरान पाया गया कि लोसर्टन नामक एक दवा, जो तनाव कम करने के लिए ली जाती है, पुरूषों की सैक्स संबंधी समस्याओं का निवारण करने में बहुत उपयोगी साबित होती है। यह दवा सामान्यतः उच्च रक्तचाप के कारण पुरूषों में पैदा होने वाली नपुंसकता को दूर करने में काफी प्रभावकारी सिद्ध होती है। शोधकर्ताओं ने पाया कि हाइपरटेंशन के शिकार जिन लोगों ने लोसर्टन दवा का सेवन किया, उनमें से ज्यादातर की सैक्स संबंधी क्रियाओं में जबरदस्त सुधार हो गया और उन्होंने अपनी यौन संबंधी समस्याओं में काफी कमी पाई। शोधकर्ताओं ने हाइपरटेंशन और यौन संबंधी गड़बड़ियों से परेशान 82 पुरूषों को करीब तीन माह तक इलाज के तौर पर केवल यही दवा खाने को
सकारात्मक दृष्टिकोण रखें, स्वस्थ रहें
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प्रस्तुति: योगेश कुमार गोयल शोधकर्ताओं का कहना है कि शारीरिक कमियों और बीमारियों से जल्दी छुटकारा पाने में व्यक्ति का सकारात्मक दृष्टिकोण बहुत उपयोगी साबित होता है। उनका कहना है कि भले ही आप दिल की बीमारी से पीड़ित हों, आपका ऑपरेशन होने जा रहा हो या आप किसी पुरानी शारीरिक बीमारी से परेशान हों, इन तमाम तकलीफों से मुक्ति पाकर आप कितनी जल्दी चुस्त-दुरूस्त हो सकते हैं, यह तय करने में आपका दृष्टिकोण बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सकारात्मक विचारों से भरपूर व्यक्ति अपनी इच्छाशक्ति के दम पर बीमारी से लड़ने का हौंसला पैदा कर लेता है और सामान्य होने के लिए दवाएं जितनी महत्वपूर्ण होती हैं, उतना ही महत्वपूर्ण व्यक्ति का जीवन के प्रति सकारात्मक रवैया भी होता है। शोधकर्ता हालांकि यह बता पाने में असमर्थ हैं कि आखिर सकारात्मक विचार किस तरह बीमारियों से लड़कर दुरूस्त होने में मदद करते हैं। शोध टीम के प्रमुख डा. डोनाल्ड सी कोल ने इस विषय पर इससे पूर्व किए गए सभी शोधों का अध्ययन करने के बाद स्वयं भी मरीजों के विचारों, उनके स्वयं के ठीक होने या न होने के दृष्टिकोण तथा इलाज के बाद उनकी स्वास्थ्य रिपोर्
कुछ रोचक बातें फिल्मों और फिल्म सितारों की
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प्रस्तुति : मीडिया केयर नेटवर्क ’ पुणे फिल्म इंस्टीच्यूट से डिप्लोमा लेकर मुम्बई में जया बच्चन जुहू की उसी बिल्डिंग में रहती थी, जिसमें रेखा रहती थी। आगे चलकर दोनों ने खूब नाम कमाया और साथ में फिल्म ‘सिलसिला’ की। ’ अभिनेत्री माला सिन्हा का असली नाम उनकी बुआ आइडा से प्रेरित होकर एल्डा सिन्हा रखा गया था। ’ जब महात्मा गांधी ने मुम्बई के ग्वालिया टैक स्थित ‘क्रांति मैदान’ में क्रांति का नारा लगाया था तो उस सभा में पृथ्वीराज कपूर के साथ 6 वर्षीय शशि कपूर भी उपस्थित थे। ’ लीना चंद्रावरकर को शक्ति सांवत ने एक कांटेस्ट में फेल किया था, जिस कारण उन्हें धारवाड़ लौटना पड़ा था लेकिन आगे चलकर इसी लीना को सुनील दत्त ने अपनी फिल्म ‘मन का मीत’ में ब्रेक दिया। ’ पहलाज निहालानी की सुपरहिट फिल्म ‘आंखें’ में दिव्या भारती की मौत के बाद उनके स्थान पर रागेश्वरी को लिया गया था। ’ प्रसिद्ध निर्देशक महेश भट्ट ने कैरियर की शुरूआत राज खोसला के सहायक के रूप में की थी। ’ देवानंद की सिफारिश पर गुरूदत्त ने राज खोसला को अपना सहायक बनाया था और आगे चलकर देवानंद ने राज खोसला के निर्देशन में कई फिल्मों में अभिनय किया
पेट में ही शहद का भण्डारण करती हैं मधु चींटियां
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-- योगेश कुमार गोयल (मीडिया केयर नेटवर्क) शहद की चींटियां, जिन्हें ‘मधु चींटियां’ कहा जाता है, प्रायः अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, अमेरिका तथा न्यूगिनी में पाई जाती हैं। विश्वभर में पाई जाने वाली अन्य चींटियों की भांति ही मधु चींटियों में भी रानी चींटी अण्डे देती है और मजदूर चींटियां उन अण्डों को सेने का काम करती हैं। मधु चींटियां प्रायः छोटे-छोटे समूहों में ही रहती हैं और कीड़ों तथा कुछ विशेष प्रकार के पौधों की कोंपलों से रस चूस-चूसकर आपातकाल के लिए इकट्ठा करती हैं। इस तरल पदार्थ (शहद) का भण्डारण स्थल भी बड़ा विचित्र होता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इसका भण्डारण ये अन्य किसी स्थान पर नहीं करती बल्कि कुछ विशेष प्रकार की चींटियों का पेट ही यह भण्डारण स्थल होता है। अपने पेट में रखी शहद की इन बूंदों से ही ये चींटियां अपना भोजन भी प्राप्त करती रहती हैं। जब इनका पेट शहद से भर जाता है तो यह सुनहरे पीले रंग का हो जाता है। आपातकाल के समय या बाहर भोजन की आपूर्ति में कमी आने पर ये चींटियां अपने पेट से शहद की एक-एक बूंद बाहर उगल देती हैं। इससे छत्ते की मजदूर चींटियां अपना पेट भरती हैं। मधु चींटियों क
40 साल में अण्डे से व्यस्क बनते हैं ‘ज्यूल बीटल’
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-- योगेश कुमार गोयल (मीडिया केयर नेटवर्क) समूचे यूरोप के जंगलों में पाए जाने वाले ‘ज्यूल बीटल’ नामक कीट अत्यंत दुर्लभ कीट माने जाते हैं। इन कीटों की शारीरिक चमक बड़ी अनूठी होती है। इस कीट की सबसे बड़ी विलक्षणता यह है कि अण्डे से व्यस्क बीटल बनने में बहुत लंबा समय लगता है। इस प्रक्रिया में प्रायः 40 वर्ष तक का समय भी लग जाता है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस कीट का जीवनकाल कितना लंबा होता है। मादा बीटल किसी जीवित वृक्ष की छाल पर अपने अण्डे देती है और इन अण्डों से निकलने वाले लार्वे छाल के अंदर पेड़ में ही अपना भोजन तलाशते हैं। उस पेड़ को काटकर गिरा दिए जाने के बाद भी यह लार्वा उसी के भीतर रहकर अपना भोजन तब तक प्राप्त करते हैं, जब तक उन्हें प्राप्त होता रहे और एक पूर्ण विकसित बीटल के रूप में ही बाहर निकलते हैं। इस कीट को ‘स्पैंडर बीटल’ के नाम से भी जाना जाता है। आप यह भी जानना चाहेंगे कि इसे ‘ज्यूल बीटल’ क्यों कहा जाता है? इसका कारण यह है कि यूरोप के कटिबंधीय क्षेत्रों में इन बीटल्स को इनकी अनूठी चमक के कारण लोग अपने आभूषणों (ज्वैलरी) में भी जड़ते हैं, यही कारण है कि इन्हें ‘ज्यूल बी
टांगों से खून की पिचकारी छोड़ता है ‘लेडी बर्ड’
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-- योगेश कुमार गोयल (मीडिया केयर नेटवर्क) जी नहीं, ‘लेडी बर्ड’ अपने नाम के अनुरूप कोई मादा पक्षी नहीं है, न ही यह कोई नर पक्षी है बल्कि वास्तव में यह एक ऐसा आकर्षक रंग-बिरंगा भुनगा है, जो अपनी टांगों से खून की पिचकारी छोड़ने के लिए जाना जाता है। यह भुनगा अपनी टांगों से खून की पिचकारी बेवजह ही नहीं छोड़ता बल्कि जब यह किसी दूसरे जीव-जंतु को देखकर घबरा जाता है या भयभीत होता है, तभी अपनी टांगों से रक्त की पिचकारी छोड़ता है। सवाल यह है कि आखिर टांगों से इतना खून निकाल देने के बाद भी यह जीवित कैसे रहता है? इसका कारण यह है कि इस भुनगे के शरीर में सिर्फ रक्तवाहिनियों में ही रक्त नहीं रहता बल्कि इसके पूरे शरीर में रक्त भरा रहता है। सारे शरीर में भरा यह रक्त इसके सभी अंग-प्रत्यंगों को भिगोये रखता है। जब यह कोई खतरा भांपकर भयभीत अवस्था में रक्त की पिचकारी छोड़ना चाहता है, तब यह अपने पेट को दबाकर शरीर में रक्त दबाव बढ़ा लेता है। इस वजह से इसकी टांगों के जोड़ों की पतली त्वचा एकाएक फट जाती है और वहां से खून ऐसे निकल पड़ता है, मानो इसने खून की पिचकारी छोड़ी हो। (एम सी एन)