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Showing posts from July, 2010

मानें या न मानें यह सच है

  प्रस्तुति: योगेश कुमार गोयल अंधी होकर चुकाई शोध की कीमत मैडम मैरी क्यूरी और सर पायरे क्यूरी ने 20वीं सदी के आरंभ में रेडियोधर्मी तत्वों की खोज आरंभ की थी और अंततः विज्ञान की दुनिया में नया कारनामा करने के लिए मैडम क्यूरी ने अपनी जान दांव पर लगा दी। यूरेनियम और पिचवलेंड के पृथकीकरण के लिए अवशेष बनाने हेतु उन्होंने विभिन्न रसायनों का प्रयोग किया। इस दम्पत्ति ने पोलोनियम और रेडियम नामक दो तत्वों को अलग किया परन्तु चूंकि रेडियोधर्मी तत्व काफी हानिकारक होते हैं, अतः लंबे समय तक इस प्रकार के तत्वों के समीप रहने के कारण मैडम क्यूरी अंधी हो गई और कई रोगों से ग्रस्त भी हो गई। 1920 में श्वेत रक्तता (ल्यूकेमिया) के कारण उसकी मृत्यु हो गई। रेडियोधर्मिता के कारण ही उसे यह रोग हुआ था। रस्सी पर चलकर पार किया न्यागरा जल प्रपात 30 जून 1859 को 35 साल की उम्र में एक फ्रांसीसी नट जां फ्रॉन्स्वा ग्रैवेल ने हजारों दर्शकों की उपस्थिति में न्यागरा जल प्रपात पर बंधी करीब 1100 मीटर लंबी रस्सी पर चलकर इस जल प्रपात को पार करके एक हैरतअंगेज करतब दिखाया था। रस्सी नदी के आर-पार 50 फुट की ऊंचाई पर बांधी गई थी

जीव-जंतुओं की अनोखी दुनिया

  प्रस्तुति: योगेश कुमार गोयल ताजे पानी में रेंगने वाला जानवर है ‘घड़ियाल’ घड़ियाल ताजे पानी में रेंगने वाला एक ऐसा समुद्री जानवर है, जो रेंगने वाले सर्वाधिक प्राचीनतम जानवरों में से एक है। माना जाता है कि घड़ियाल की प्रजाति करीब 70 लाख वर्ष पुरानी है। ये भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाते हैं। इनकी संख्या निरन्तर घटती जा रही है, जिससे इस प्रजाति के लुप्त होने का खतरा बरकरार है। घड़ियाल का सिर भोजन तलने वाले बर्तन जैसा और इसका थुथुन बेडौल होता है। हालांकि घड़ियाल प्रकृति के अन्य जीवों के लिए खतरनाक होते हैं लेकिन वर्तमान में तो ये खुद अपने अस्तित्व के संकट से ही जूझ रहे हैं। (मीडिया केयर नेटवर्क) पेड़ों पर सिर के बल लटककर जीवन गुजारते हैं ‘स्लोथ’ दक्षिण अमेरिका में ‘स्लोथ’ नामक स्तनपायी जीवों का एक ऐसा वंश पाया जाता है, जिसके सदस्य अपना अधिकांश जीवन पेड़ों पर सिर के बल लटककर ही गुजारते हैं। स्लोथ की मुख्यतः दो प्रजातियां होती हैं, ‘उनाऊ’ तथा ‘आई’। ये जीव अपने पंजों और उंगलियों के मुड़े हुए नाखूनों की मदद से उल्टा चलने में समर्थ होते हैं। स्लोथ पेड़ की चोटी से नीचे की ओर धीमी गति से चलते हैं और

आफत बना मोबाइल

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बढ़ते खतरे मोबाइल फोन के --- योगेश कुमार गोयल --- पिछले कुछ वर्षों में दुनिया भर में मोबाइल फोन (सेलफोन) का उपयोग आश्चर्यजनक रूप से बहुत तेजी से बढ़ा है। कुछ साल पहले तक मोबाइल फोन रखना जहां स्टेटस सिंबल की निशानी था, वहीं अब कामकाजी लोग हों या कालेज अथवा स्कूल के छात्र-छात्राएं, यहां तक कि रिक्शा चालक और भिखारी भी, हर कोई मोबाइल फोन पर बातें करता दिखाई पड़ता है। कहना गलत न होगा कि मोबाइल फोन आज हमारा चौबीसों घंटे का साथी बनता जा रहा है। दरअसल आए दिन मोबाइल फोन की बढ़ती खूबियों ने इसे इतना उपयोगी बना दिया है कि एक पल के लिए भी इसके बिना रह पाना अब असंभव सा प्रतीत होने लगा है लेकिन इसके साथ-साथ यह भी सच है कि मोबाइल फोन से स्वास्थ्य संबंधी खतरे भी बढ़ते जा रहे हैं और यही वजह है कि मोबाइल फोन से होने वाले स्वास्थ्य संबंधी दुष्प्रभावों पर पिछले कुछ वर्षों से बहस छिड़ी है। दरअसल बड़ी-बड़ी कम्पनियां भी अपने प्रोड्क्ट्स बाजार में लांच करते समय उनकी खूबियां तो खूब बढ़ा-चढ़ाकर बताती हैं पर उनके साइड इफैक्ट्स को न सिर्फ बड़ी चालाकी से छिपा लिया जाता है बल्कि अगर किसी अनुसंधान अथवा अध्ययन के जरिये उन

उर्मिला को है सपनों के राजकुमार की तलाश

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उर्मिला भले ही आज भी अपनी फिल्मों में धमाकेदार आइटम करके दर्शकों को अपना दीवाना बनने पर मजबूर करने की सामर्थ्य और सैक्स अपील रखती हों पर अब उर्मिला ने शादी करके घर बसाने का फैसला कर लिया है। रामगोपाल वर्मा की फिल्म ‘रंगीला’ में अपने जलवों की बदौलत रातों-रात बॉलीवुड की हॉट क्वीन बनने और सफलता की बुलंदियों को छूने वाली उर्मिला ने रामू की ही बहुचर्चित फिल्म ‘रामगोपाल वर्मा की आग’ में ‘महबूबा महबूबा’ नामक गाने पर डांस करते हुए अपने हुस्न का ऐसा कहर बरपाया कि दर्शकों के होश उड़ाने के लिए यह काफी था। अब शादी के बाद भी उर्मिला फिल्मों में काम करेंगी या नहीं और अगर करेंगी भी तो क्या तब भी इसी तरह की हॉट-हॉट परफॉसमेंस दे सकेंगी, इस बारे में तो दावे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता पर शादी के बारे में उर्मिला का कहना है कि शादी जिंदगी का एक अहम मोड़ होता है और मुझे अब तक कोई ऐसा व्यक्ति मिला ही नहीं है। मुझे ऐसे शख्स की जरूरत नहीं है, जो मुझे कहे कि मैं बहुत खूबसूरत हूं या बहुत महान हूं बल्कि जीवनसाथी के रूप में मैं एक ऐसा इंसान ही चाहती हूं, जो समझदार हो। अपने जीवन में मैं जो कुछ पाना चाहती हूं, वह

डेढ़ मिनट में तीन पिज्जा

अगर कोई शेफ एक समय में तीन पिज्जा बना डाले और वह भी सिर्फ 90 सैकेंड में तो इसे एक अनोखी उपलब्धि ही माना जाएगा। ब्रिटेन में पिछले दिनों यह कमाल कर दिखाया 32 वर्षीय प्रेम सिंह नामक एक भारतीय शेफ ने, जिसे इस प्रतियोगिता के बाद सबसे तेज गति से पिज्जा बनाने वाले शेफ के रूप में मान्यता भी प्रदान की जा चुकी है। प्रेम सिंह इस समय मिडलैंड्स के उस लैस्टर नगर में मशहूर फास्ट फूड कम्पनी ‘डोमिनोज पिज्जा’ में कार्यरत है, जहां भारतीयों की विशाल आबादी रहती है। ब्रिटेन आने से पहले वह भारत में डोमिनोज पिज्जा में ही काम करता था। प्रेम सिंह ने अपनी निपुणता का प्रदर्शन ‘फास्टेस्ट पिज्जा मेकर’ नामक प्रतियोगिता में किया। इस प्रतियोगिता में दो जज थे। प्रेम सिंह ने तीखे स्वाद के मशरूम, पनीर और टमाटर के पिज्जा सिर्फ एक मिनट 23 सैकेंड में बनाकर यह प्रतियोगिता जीती। डोमिनोज पिज्जा ने 25 साल पहले इस प्रतियोगिता की शुरूआत की थी, जिसका उद्देश्य अपनी शाखाओं पर स्टाफ की कार्यकुशलता में निखार लाना था लेकिन अब दुनियाभर के स्टोरों से शेफ इस प्रतियोगिता में भाग लेकर विश्व चैम्पियन का खिताब हासिल कर सकते हैं। प्रतियोगिता

क्यों माना जाता है 13 का अंक अशुभ?

13 के अंक को बहुत से लोग अशुभ मानते हैं और न केवल हमारे यहां बल्कि दूसरे देशों में भी यह अंधविश्वास प्रचलित है। कई इमारतों में 13 से ज्यादा मंजिलें होने पर भी वहां 13वीं मंजिल नहीं होती। कुछ अस्पतालों में आपको 13 नंबर का वार्ड नहीं मिलेगा। बहुत से लोग 13 अंक को अशुभ मानने की वजह से इस तारीख को कोई शुभ कार्य भी नहीं करते। आखिर क्या वजह है कि दुनिया भर में 13 के अंक को इतना अशुभ माना जाता है? इस बारे में कई प्रसंग प्रचलित हैं। कहा जाता है कि जीजस क्राइस्ट की आखिरी दावत में जीजस सहित कुल 13 व्यक्ति थे, जिनमें 12 उनके शिष्य थे। उसके बाद जीजस का अंत कर दिया गया था। तभी से 13 की संख्या को अशुभ माना जाने लगा। 13 को अशुभ मानने के संबंध मं एक यूनानी कथा भी प्रचलित है। माना जाता है कि वलहंला बैकंट में 12 देवताओं को आमंत्रित किया गया लेकिन उस दावत में लौकी नाम का एक शैतान जबरन घुस आया, जिससे वहां मौजूद लोगों की संख्या 13 हो गई, जिसका परिणाम यह हुआ कि उनके सबसे प्रिय देवता बाल्डर को मार दिया गया, जिसके बाद 13 के अंक को अशुभ माना जाने लगा। हालांकि इस प्रकार की मान्यताओं के पीछे कोई प्रामाणिक तथ्

पानी पर चलने वाला रोबोट

कुछ साल पूर्व तक किसी ऐसी मशीन की कल्पना करना भी मुश्किल था, जो पानी पर चल सके लेकिन आज के वैज्ञानिक युग में सब कुछ संभव है। वैज्ञानिकों ने कुछ समय पूर्व पानी पर चलने वाला एक रोबोट बनाकर हर किसी को हैरत में डाल दिया। प्रकृति से प्रेरणा लेकर मैसाच्युएट्स इंस्टीच्यूट ऑफ टैक्नोलॉजी के शोध से मदद लेकर कार्नेगी मेलान इंजीनियरिंग के असिस्टेंट प्रोफेसर मेटिन सिट्टी और उनकी टीम ने एक ऐसा छोटा सा रोबोट बनाने में सफलता हासिल की, जो तालाब के शांत पानी पर चहलकदमी करने वाले कीट वाटर स्किमर्स, पांड स्केटर्स या जीसस बग्स की तरह ही आराम से पानी पर चल-फिर सकता है। प्रो. सिट्टी, उनकी टीम तथा अन्य शोधकर्ताओं को विश्वास है कि इस टैक्नोलॉजी से विकसित किए जाने वाले अन्य रोबोट भी पानी पर अपने लंबे पैरों की मदद से चल सकेंगे। प्रो. सिट्टी की टीम द्वारा विकसित पानी पर चलने वाला रोबोट एक केमिकल सेंसर से युक्त है। प्रो. सिट्टी बताते हैं कि इस रोबोट का सबसे बड़ा फायदा यह है कि किसी भी शहर के पेयजल भंडारण में विचरण करके ये रोबोट किसी भी रासायनिक मिलावट का पता आसानी से लगा सकते है। इन पर कैमरा फिट कर दिया जाए तो

क्यों अटकती है दिमाग के रिकार्ड ट्रैक पर कोई धुन?

कई बार ऐसा होता है कि चलते-फिरते सुनी गई कोई धुन पूरा दिन हमारे दिमाग में ‘अटकी’ रह जाती है। ऐसा क्यों होता है, अब तक यह एक पहेली ही था पर वैज्ञानिक अब इस पहेली को समझने के करीब आ गए हैं। वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क के उस भाग को खोज लिया है, जो संगीत को हमारे समझने लायक बनाता है। मस्तिष्क का यही भाग हमारी तार्किक शक्ति और जरूरत पड़ने पर हमारी स्मरण शक्ति (याद्दाश्त) का दरवाजा खोलने में भी सहायक होता है। वैज्ञानिकों ने इसके लिए ऐसे व्यक्तियों पर परीक्षण किया, जिन्हें संगीत की थोड़ी-बहुत समझ थी। उन व्यक्तियों को 8 मिनट की एक ऐसी धुन सुनाई गई, जिसमें सभी 24 मेजर और माइनर ‘की’ प्रयुक्त हुई थी। इस धुन में एक अन्य धुन इस प्रकार मिलाई गई थी, जो बीच-बीच में उभरती थी। यह धुन एक विशेष ‘आकार’ में तैयार की गई थी। वैज्ञानिकों ने पाया कि उक्त सभी व्यक्तियों के मस्तिष्क का वह हिस्सा, जो माथे के ठीक पीछे स्थित होता है, उक्त धुन के ‘आकार’ की पहचान कर रहा था। इसके आधार पर वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया कि मस्तिष्क का उक्त हिस्सा, जो ‘रोस्ट्रोमाडियल प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स’ कहलाता है, मस्तिष्क में संगीत का ‘नक्शा

बदलती जलवायु से निपटना सिखाएंगे पौधे

ब्रिटेन की दो शोध परिषदों ‘जैव प्रौद्योगिकी तथा जीव विज्ञान शोध परिषद’ (बीबीएसआरसी) और ‘प्राकृतिक पर्यावरण शोध परिषद’ द्वारा अनुदानित वैज्ञानिक यह अध्ययन कर रहे हैं कि पौधे कैसे प्राकृतिक तौर पर बदलती जलवायु के साथ अपनी अनुकूलता बैठा लेते हैं। उन्होंने एक ऐसी खोज की है, जो हमें नई किस्म की फसलों को पैदा करने में मदद कर सकती है, जो फसलें बदलती जलवायु में भी खुद को बचाए रख सकें। इस खोज का महत्व इस तथ्य में निहित है कि यह प्रदर्शित करता है कि कैसे एक प्रजाति कम अवधि में विभिन्न जलवायु परिवर्तनों के प्रति विभिन्न किस्म की प्रतिक्रियाएं विकसित करने में सक्षम होती हैं। ‘जॉन आईनेस संेटर’ के शोधकर्ता यह पता लगाने में जुटे हैं कि पौधे किस तरीके से सर्दियों की ठंड को इस्तेमाल कर फूल पैदा कर सकते हैं, जिसके लिए वसंत की गर्माहट जरूरी होती है। यह प्रक्रिया, जिसे ‘वर्नलाइजेशन’ कहते हैं, एक ही पौध प्रजाति के भीतर स्थानीय जलवायु के मुताबिक भिन्न हो सकती है। यह पाया गया है कि एक विशेष आनुवंशिक सूत्र एफएलसी ही सर्दियों में फूलों के पैदा होने में विलम्ब की वजह है। शोध टीम ने यह खोज निकाला कि सर्दियां एफ

कुछ काम की बातें

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दैनिक पंजाब केसरी (15.07.2010)

ऐसे दूर करें शारीरिक एवं मानसिक थकान

हम सबकी दिनचर्या में कुछ ऐसे क्षण आते हैं, जब हम मानसिक और शारीरिक रूप से थकान अनुभव करते हैं। आमतौर पर हम अपनी थकान कुछ समय आराम करके दूर भगाने का प्रयास करते हैं किन्तु आराम के लिए अधिक समय की आवश्यकता होती है। हर समय आराम करना संभव भी नहीं होता। ऐसे में थकान दूर करने के लिए कई अन्य उपायों का सहारा लिया जा सकता है। ’ थकान अधिक होने पर हाथ-पांव ढ़ीले छोड़कर आंखें बंद कर पलंग पर लेट जाइए। इससे मांसपेशियों का तनाव दूर होता है। ’ अधिक समय खड़े होकर काम करने से पांव की एड़ियां दर्द करने लगती हैं। ऐसे में गर्म पानी में थोड़ा नमक डालकर पांव कुछ समय इस पानी में रखें, जिससे दर्द कम हो जाएगा। ’ टांगों की पिंडलियां दर्द करने पर घुटनों के ऊपर से ठंडा पानी डालें। पिंडलियों का दर्द कम हो जाएगा। ’ सफर के बाद थकान होने से घर या होटल पहुंचकर मौसम के अनुसार गुनगुने या ताजे पानी से स्नान करके ढ़ीले वस्त्र पहन लें। ’ अपनी रूचि और मौसम के अनुसार चाय, कॉफी, दूध, शर्बत, शिकंजी, जूस पीने से भी थकान से राहत मिलती है। ’ रसोई तथा घर के दूसरे कार्यों से निपटने के बाद ताजे पानी से हाथ-मुंह धोकर कपड़ बदल लें। बाल

रोजगार और पैसा दिलाये ‘धन की छतरी’

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-- योगेश कुमार गोयल -- पूर्ण रूप से शाकाहारी भोज्य पदार्थ मशरूम (खुम्ब) का उत्पादन हाल के वर्षों में दूसरे व्यवसायों की अपेक्षा कम समय में अधिक पैसा प्रदान करने वाले उद्योग के रूप में पनपा है। हालांकि बड़े स्तर पर मशरूम उत्पादन के लिए अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है पर एक छोटे से कमरे में बहुत कम पूंजी लगाकर भी आप मोटा मुनाफा कमा सकते हैं लेकिन इसके लिए यह अपेक्षित है कि मशरूम उगाने से पहले आपको इसकी खेती के बारे में कुछ बुनियादी बातों की जानकारी हो। मशरूम मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं:- विषैले तथा विषरहित। आपने बारिश के दिनों में अपने आप उग जाने वाले कुछ मशरूम देखे होंगे, वो विषैले होते हैं लेकिन वैज्ञानिक तरीके से घर या खेत में उगाए जाने वाले मशरूम विषरहित तथा पौष्टिक होते हैं। इनमें पौष्टिकता के साथ-साथ खनिज, प्रोटीन तथा विटामिन्स का भी भंडार होता है तथा रोगकारक कोलेस्ट्रोल, शक्कर और सोडियम जैसे तत्वों की मात्रा भी बहुत कम होती है, जिससे ये उच्च रक्तचाप व मधुमेह के रोगियों के लिए भी एक सुरक्षित खाद्य पदार्थ है। विषरहित मशरूम की भी कई किस्में हैं, जिनमें से भारत में तीन प्रकार के

हर तरह के वातावरण में रह सकते हैं ‘सियार’

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भारत में लगभग हर जगह पर पाया जाने वाला जानवर ‘सियार’ कुत्ते जैसा दिखने वाला एक मांसाहारी जानवर है। इसे ‘गीदड़’ के नाम से भी जाना जाता है। इनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये सभी प्रकार के वातावरण में रहने में समर्थ होते हैं। इनके शरीर का रंग भूरा होता है जबकि इनके कंधे, कान और पेट पर काले-सफेद बाल होते हैं तथा पूंछ का अंतिम सिरा काला होता है। सियार की टांगें लंबी और मजबूत होती हैं, जिस कारण ये कम समय में लंबी दूरी तय करने में सक्षम होते हैं सियार 16 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से दौड़ सकते हैं। सियार के दांत थोड़ा मुड़ाव लिए हुए काफी तीखे होते हैं, जिस कारण ये पक्षियों, छोटे स्तनधारियों और रेंगने वाले जीवों का आसानी से शिकार कर लेते हैं। करीब साढ़े तीन फुट लंबा यह जानवर औसतन 10-12 किलो वजनी होता है। सियार रात्रिचर होते हैं और मांद में रहते हैं। यह समूहों में रहने वाला प्राणी है। इसका बड़ी संख्या मे शिकार किए जाने के कारण यह अब विलुप्त होते प्राणियों की श्रेणी में शुमार हो गया है और इस कारण इसे संरक्षित वन्य प्राणी का दर्जा दिया गया है। मादा सियार नर के साथ सहवास के करीब दो माह बाद 4-5 बच्चों क

संकटग्रस्त वन्य प्राणी है ‘आसामीज बंदर’

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भारत, भूटान, नेपाल, वियतनाम, थाईलैंड, दक्षिण चीन सहित दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व एशिया के कई भागों में पाए जाने वाले आसामीज बंदर प्रायः सघन वनों में देखे जाते हैं। भारत में ये बंदर हिमालय के जंगलों में उत्तर प्रदेश से असम तक पाए जाते हैं। इनके शरीर का रंग भूरा होता है तथा इनका शरीर काफी गठीला होता है। इनके पीछे का हिस्सा लाल व नारंगी नहीं होता, इसलिए इन्हें अन्य बंदरों से अलग आसानी से पहचाना जा सकता है। सिर से पूंछ तक इनके शरीर की लम्बाई करीब 80 सेंटीमीटर तथा वजन 10 से 15 किलो के बीच होता है। मादा का वजन 8 से 12 किलो के बीच होता है। इनकी पूंछ की लम्बाई 25-30 सेंटीमीटर होती है। हिमालय में यह बंदर 810 से 1830 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है। यह एक संकटग्रस्त वन्य प्राणी है। इसकी आदतेें विध्वंसक किस्म की होती हैं। फल, फूल, पत्तियां तथा कीड़े-मकोड़े इसका पसंदीदा आहार होते हैं। इसकी औसत आयु लगभग 20 वर्ष होती है। इसका प्रजनन काल वर्षभर रहता है और मादा छह माह के गर्भाधान के बाद एक बच्चे को जन्म देती है। -- योगेश कुमार गोयल

खरगोश से बड़े आकार का बुद्धिमान प्राणी है ‘बिज्जू’

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बिज्जू अरब क्षेत्र में पाया जाने वाला एक छोटे आकार का जानवर है, जो खरगोश से थोड़ा बड़े आकार का होता है। वैसे यह सम्पूर्ण भारत में भी पाया जाता है। इसे एक बुद्धिमान प्राणी माना जाता है। इसकी लम्बाई करीब 2 फुट और इसका वजन लगभग 2.5 से 4.5 किलो के बीच होता है। चूंकि यह अधिकांशतः पत्थरों व चट्टानोे पर रहता है, अतः प्रकृति ने इसका रंग भी पत्थरोें व चट्टानों जैसा काला ही बनाया है, जिससे काफी हद तक दुश्मनों से इसका बचाव होता है। यह इन्हीं चट्टानों या पत्थरों में खोह अथवा बिल बनाकर रहता है। जब तक यह अपनी खोह के आसपास रहता है, यह सुरक्षित रहता है क्योंकि दुश्मन का हमला होते ही यह बड़ी फुर्ती से अपनी खोह में घुस जाता है लेकिन जैसे ही यह अपने सुरक्षित ठिकाने से दूर निकलता है, दुश्मन इस पर हमला बोलकर इसका काम तमाम कर देता है। चील, गिद्ध और अन्य बड़े मांसाहारी पक्षी इसके सबसे बड़े दुश्मन होते हैं, जो इस पर हमला करने की ताक में रहते हैं। बिज्जू कुछ स्थानों पर पेड़ों के खोखलों में भी अपना आवास बनाता है। यह छोटे स्तनपायी और छोटे पक्षियों को अपना शिकार बनाता है। इसका प्रजनन काल वर्षभर रहता है। मादा बिज्जू छह

सामाजिक सरोकारों से जुड़ी एक पुस्तक

देखने के लिए कृपया उपरोक्त लिंक को क्लिक करें या इस लिंक पर जाएं :- http://www.facebook.com/photo.php?pid=420709&l=9a8a47057b&id=100000112372169

‘अजीत समाचार’ (दैनिक) में ‘तीखे तेवर’

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‘तीखे तेवर’ पुस्तक पर कुछ प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं की प्रतिक्रियाएं

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    तीखे तेवर (25 विचारोत्तेजक निबंधों की 160 पृष्ठों की पुस्तक) -- एक संजीदा पत्रकार होने के नाते योगेश गोयल हमेशा सामाजिक सरोकारों के साथ निकट से वाबस्ता रहे हैं। वह चिंतक भी हैं और आम आदमी की निजी अनुभूतियों को पहचानने वाली दृष्टि भी उनके पास है। उनकी इस पुस्तक का हर आलेख कुछ-न-कुछ कहता, शिक्षा अथवा नसीहत देते प्रतीत होता है। यह पुस्तक पढ़ने और संग्रह करने के योग्य है। - अजीत समाचार (जालंधर) -- पूरी किताब एक-एक ऐसे विचार बिन्दु को प्रदर्शित करती है, जिसमेें गोयल का रचना संसार सामाजिक समस्याओं के बीच एक ऐसी खिड़की की तलाश करता है, जिससे कुरीतियों, गिरते सामाजिक सरोकारों और बुराईयों पर बराबर प्रहार होता है। - दैनिक हमारा महानगर (मुम्बई एवं नई दिल्ली) (27.12.2009) -- लेखक का रचनात्मक कौशल लाजवाब है। पुस्तक में संग्रहीत एक-एक आलेख अत्यंत महत्वपूर्ण है। - दैनिक पंजाब केसरी (दिल्ली) (29.1.2010) -- रचनात्मक पत्रकारिता के पक्षधर, पोषक और सजग प्रहरी श्री गोयल ने संक्रमण के दौर से अपनी बिरादरी पर भी अनेक सवालिया निशान उठाते हुए नैतिक दायित्वबोध कराया है। पुस्तक के सभी निबंध विचारोत्तेजक

दैनिक स्वतंत्र वार्ता (हैदराबाद) में प्रकाशित ‘तीखे तेवर’ पुस्तक की समीक्षा

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मैं एक लड़की हूं: बिपाशा बसु

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पंजाब केसरी के 01.07.2010 अंक में प्रकाशित